वाराणसी: चोलापुर सा0 स्वास्थ्य केंद्र का क्या है वास्तविकता

रिपोर्ट- अंकित मिश्रा

मऊ। चोलापुर स्थित सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र को वाराणसी जनपद के चौथी सबसे अच्छे स्वास्थ्य केंद्र का दर्जा मिला हुआ है। डॉक्टरों की दया पर दर्जनों प्राइवेट पैथोलॉजी एवं झोलाछाप अस्पताल फल-फूल रहे हैं। यहां कमीशन का खेल पूरे वर्ष चलता रहता है।

विकास खंड चोलापुर अंतर्गत सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र चोलापुर की स्थिति दिन -प्रतिदिन बदतर होती चली जा रही है। स्वास्थ्य केंद्र का परिसर, रंगरोगन, पेड़- पौधे आदि देखकर लगता है कि यहां की कार्यशैली व्यवस्थित होगी। डॉक्टरों की लापरवाही की नित्य प्रति शिकायत मरीजों द्वारा किए जाने से जांच के तौर पर एक मरीज अस्पताल में कार्यरत दंत चिकित्सक (सर्जन ) अमित जैन के पास मामूली दांत दर्द की शिकायत लेकर पहुंचे। मौके पर दंत सर्जन महोदय ने मुंह में टॉर्च जलाते हुए और मरीज को झोलाछाप डॉक्टरों की सलाह देना शुरु कर दी। उन्होंने कहा कि अस्पताल में दांत के इलाज के लिए ना ही उचित दवायें है ना ही आवश्यक उपकरण। कमीशन के खेल में बेधड़क एक निजी दंत चिकित्सालय में इलाज कराने का मशविरा देने के साथ ही बाहर से एक्सरे करा कर आने की बात करते हुए कुर्सी खाली करने की नसीहत दे दी गई।

अब बड़ा सवाल जब छोटे मोटे इलाज करने में भी ये दंत चिकित्सक सक्षम नहीं हैं तो फिर मोटी तनख्वाह पर सर्जन की नियुक्ति क्यों?
गुरुवार को बनियापुर निवासी किशुन गुप्ता मामूली खासी की बीमारी के उपचार हेतु सामुदायिक स्वास्थ्य केन्द्र चोलापुर पहुचे। डाक्टर ने लक्षण पूछकर झटपट दो पर्चे बना डाले एक पर्चा सरकारी अस्पताल के नाम का दूसरा बाहर से खरीदे जाने वाली दवाओं की लम्बी फेहरिस्त का। बेचारे किशन ने अस्पताल के बाहर बने मेडिकल स्टोर का रूख किया। सैकड़ो रूपये की दवायें खरीद कर घर चला गया।

मोंहाव निवासी दूसरे मरीज कृपाशंकर चौबे सास फूलने की दवा के लिये पहुंचे तो उन्हें बताया गया कि सांस फूलता है तो घर से बाहर मत दौड़िये इसका कोई स्थायी इलाज नही है । फिर भी मुफ्त दवा की आस लगाये कृपाशंकर ने जब दवा लिखने की विनती की तो उन्हें भी दो पर्चे थमा दिये गये। पहला अस्पताल का नाम छपा पर्चा दूसरा वो पर्चा जो दिखाकर बाहर से दवा खरीदनी है।
फौजदार यादव निवासी चोलापुर ने बताया कि हास्पिटल की हालत अति चिंताजनक है। इसी तरह का आरोप बरथौली ग्राम निवासी खंझाटी ने लगाते हुये कहा कि इस हास्पिटल में एक बड़ी पर्ची के साथ एक छोटी पर्ची दिया जाता है और बताया जाता है कि अगर आप बाहर से दवा नही लेंगे तो फायदा नही होगा हार मानकर बाहर से खरीदनी पड़ती है।
इसका क्या मतलब समझा जाय क्या सरकारी अस्पतालों में नकली दवायें दी जाती हैं या बाहर की दवाये विशेष लाभ?
जनाब यह सारा खेल कमीशनखोरी का है। जो दवा, एक्सरे, अल्ट्रासाउंड यहां तक कि बिना सुविधा शुल्क दिये 102 एम्बुलेस का भी पहिया नही हिलता।
अस्पताल के भीतर हर तरह के डिग्री धारक डाक्टर मौजूद हैं लेकिन केवल कागजी खानापूर्ती के लिये। सूत्र बताते हैं कि अस्पताल में आने वाली दवाओं, टीके एवं अन्य चीजों की कालाबाजारी की जाती है।
वहीं अस्पतल के बाहर फलने फूलने वाले दवाखानों की स्थिति अलग ही है पहले तो जो दुकानदार बीफार्मा डिग्री धारक नही
वो इसका महीना देते है।
दूसरे जो मेडिकल स्टोर सीएचसी या पीएचसी के पास हैं वो अपनी दुकान तक पर्चा पहुचने का पैसा अलग से देते हैं। साथ में अस्पताल से जेनरिक दवाओं के बाहर से लेने के लिये लिखे जाने की बात आम है। चोलापुर अस्पताल में बाहर से मगाये जाने वाली कुछ आम जेनरिक दवायें जो काफी उची एम आर पी पर बिकते हैं। जैसे निसिप प्लस एम आर पी 48 रूपये (खरीद 8 रूपये) फ्लाक्लिप एम आर पी 54 रूपये (खरीद 12 रूपये) इ-माल एमआर पी 115 (खरीद 35) कफडील एम आर पी 74 (खरीद 22) आदि आदि.....
इस बारे में पूछने पर सीएमओ वीबी सिंह का कहना है कि डाक्टरों द्वारा अस्पताल के बाहर से दवायें लिखना नियम विरुद्ध है। दोषियों के खिलाफ तत्काल कार्यवाही की जाएगी।


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