जन्माष्टमी पर्व पर आधारित कहानी

लेख़क - उमाशंकर मिश्र

चारो तरफ हर्ष /उल्लाश उत्साह उमंग का वातावरण था। मेले में चर्खियों में महिलाये /बच्चे खूब झुमझुम कर आनंद ले रहे थे । आज का पर्यावरण मानों खूबसूरत वातावरण का मित्र बन गया था। बृक्ष भी झूम रहे थे। लताये मानों झूमकर भब्य प्रदर्शन कर रहे। थे। ख़ुशी का माहौल की आधार शीला जन्माष्टमी थी। आजके ही दिन भगवान कृष्ण पैदा हुए थे। बचपन से ही उनकी विलक्षण घटनाये आज भी साहित्य/काब्य शास्त्र में पढे जाते है। कही उन्हें आदर्श तो कही उन्हें यथार्थ और कही ईश्वर माना जाता है।महाभारत का युद्ध कराके वो उन असमाजिक तत्वों का सफाया कराया जो समाज में विकृतता पैदा कर रहे थे। आज जन्माष्टमी के दिन ही उसके घर में चूल्हा नहीं जला था। अन्न का एक दाना घर में नहीं था। गरीबी इम्तहान लेती है। आदर्शो वसूलो को धूल-धूसरित करने वाली जन्माष्टमी के दिन एक परिवार ऐसा था जहाँ उपवास हो रहा था।मेला में कैसे जाये // पैसे तो जेब में नहीं है। बच्चे ने अपनी माँ से वेवाकी से बोला ::::: जो सत्य हैं कि पैसे नहीं है जाने दो अगले जन्माष्टमी में चले जाना। बच्चे भगवान के अवतार होते है उन्हें विवशता /निराशता गरीबी कुछ भी समझ में नहीं आ रही थी । वो बिना बताये जन्माष्टमी के मेले में प्रवेश कर गया तरह तरह के गुबारों को देखकर वो मचल रहा था लेकिन अपने माँ-बाप की हैसियत सोचकर चुप रहना बेहतर समझता था।एक जगह भीड़ लगी थी बच्चा वहा उत्सुकता बस चला गया। एक ब्यापारी सभी बचों को कपड़ा और कुछ गिफ्र्ट दे रहे थे। इस बच्चे पर ज्योही उनकी नजर पड़ी वो दुः खी हो गये बच्चे के हाथ में एक भी सामान नहीं था जो मेले में बिक रहे थे। परिस्थतियां बता रही थी की वो गरीब है। बेटा आगे आओ उस ब्यापारी की आवाज में नरमी थी। कितने में पढ़ते हो कुछ खरीदे नहीं :::: मेरे पास पैसे नहीहै पिता बीमार है माँ चूल्हा बर्तन करती है वो तो मना कर रही थी। लेकिन मैं चला आया । ब्यापारी अंदर से हिल गया आँखे नम हो गयी क्या देश की स्थति जो नेता बताते हैं वह सही है। यतार्थ हमेशा अलग होता है। कुछ सामान बच्चे को दिलाये और ब्यापारी बोला बेटा हमें अपने घर नहीं ले चलोगे जी चलिये आगे-आगे बच्चा पीछे पीछे ब्यापारी ।जी यही मेरी झोपड़ी है माँ बहार आओ अच्छे अंकल आये हुए है देखो हमें कितना सामान खरीदे है बचपन अपनी सत्यता छिपता नहीं है। माँ बहार आई अरे आप अरे तुम व्यापारी अब परेशांन मैंने तुमको कहा कहा नही खोज था कहा चली गयी। जब पेट में बच्चा आगया तो वहाँ से हटना जरुरी था आत्महत्या करने रेल की पटरियों के पास गयी वहा उन्होंने मुझे बचा लिया बीमार है। अपने पति की ओर संकेत करती हुई महिला ने सब कुछ स्पस्ट बता दिया। आसाम में हम लोगो की स्थिति बहुत अच्छी थी लेकिन उग्रवाद/ उल्फा के लोगो के कारण हम लोग यहाँ आकर बस गये। सामने एक सस्ता प्लाट लिए है। लेकिन मज़बूरी ने बहुत कुछ सीखा दिया। ठीक है ब्यापारी गंभीर हो गया। अपनी तो कहानी बता दिए लेकिन मेरा नही सुना बताईये लाल चाय की गिलास सामने थी। मै मजबूर हु दूध नहीं है महिला ने स्पस्ट कर दिया। ये मेरे लिए अमृत है। क्योकि तुम्हारे हाथो का बनाया है। तुम्हारे मिलजाने जाने मेरे से मेरे मस्तिकषक में क्या चल रहा है तुम्हे नहीं मालूम,तूफान में यदि पंछियो का असियाना बिखर जाता है तो क्या पुनः वो पंछिया नहीं बनती। कर्म ही पूजा है तुमको बहुत खोजा कही नहीं मिली। मैं उस जिले राज्य को ही छोड़ कर कर्नाटक आ गया यहाँ मेरी भेट एक व्यापारी से हुई,ईमानदारी नैरंग दिखाया और धीरे धीरे मैं अपना शेयर में व्यपरचलने लगा। आमदनी इतनी की हर दीवाली/हर होली/ हर जन्मास्टमी/ हर राम नवमी में हमलोग गरीब बच्चों को कपड़ा इत्यादि बाटते है। इस बच्चे के चेहरे से बहुत कुछ सामने आ गया। इसलिए मैं यहाँ आया आज भी निगाहे तुम्हे खोजती है। ना मत करना कुछ रूपये व्यापारी ने देते हुए कहा जी अब आशु सब कुछ कह रहे थे बाते बंद हो चुकी थी। तुम लोग यहाँ नहीं रहोगे चलो और 10 साल बाद बच्चा अपनी माँ से पूछ रहा था की माँ तुमनर फ़रिश्ते देखे है क्या जी वो है तुम्हारे अंकल व्यापारी की ओर श्रद्धा से हाथ जोड़ती हुई बोली। बच्चे ने पुनः प्रशन किया माँ तुमने भगवन देखा है जी वो देखो अपने पति की ओर हाथ दिखाते हुए विनम्रता से बोली ,इन्होंने ने मुझे रेल की पटरियों से हटाया। जहा मैं मरने के लिए लेटी हुई थी। बच्चे का प्रशन खत्म होने का नाम ही नहीं ले रहा था माँ हर त्योहारो की अपेक्षा जन्माष्ट्मी का त्यौहार ही क्यों मनाती हो। इसलिए कि मेरा बेटा इसी दिन वो विचित्रताये कर बैठा जो भगवन कृष्ण ने अपने बचपन में किया। पैसे गरीबी परेशानिया की परवाह किये बिना ही मेले में चला गया जहा से जीवन का एक नया आरम्भ हुआ बच्चे को गोद में ले कर माँ रो रही थी,और बच्चा चुपचाप सहमा हुवा कुछ सोच रहा था। जन्माष्टमी ने बहुत कुछ दिखा दिया था।


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