कहानी - रेशम की एक डोरी

लेखक- उमाशंकर मिश्र

खबरों में खामोशिया ,खेत खलिहान में खामोशिया हर घरो में कामोशिया, मन मस्तिष्क में खामोशिया , यद्यपि खामोशी कभी -कभी स्वास्थ्य के लिये मेडिसीन बन जाती है। बढ़ते हुये न्यूरो के मरीजो को प्राय: चिकित्सा खामोश रहने की सलाह देते है।

लेकिन आज की खामोशी सरहद की नदी से लाया गया एक लाश थी, दोनों जिलो की पुलिस लेने से इंकार कर रही थी। यह वही पुलिस है जो जनता की सेवा के लिये बनायी जाती है। सरकारें समय समय पर इन्हें पौष्टिक आहार देती है कि ये जनता को और अधिक परेशान कर सके, लाश के पास बैठी सुधा रो रही थी। आसुओ के सैलाब रुकने का नाम नही ले रहे थे , सारी घटनाओ को आँसू ही बता रहे थे।

लाश को पोस्टमार्टम हाउस में लाने वाला शंकर बहादुर था वो शिनाख्त जब हो चूका है तो गिरफ्तारी क्यों नही हो है यह जानना चाहता था।

जिले के एसपी के सख्त/ ईमानदार और मामले में स्वयं रूचि लेते थे। शंकर दो दिन से खाना नही खाया था कि 22 से 24 साल की बेटियो की लाश नदी में क्यों आती है, किसी बुढ़िया, किसी प्रौढ़ महिला की लाश नही देखी जाती है। और .......किचन में इसी उम्र की बेटिया ही जलती है। कोई बुढ़िया नही। प्रतीत होता है कि चुला केवल उम्र देखकर पकड़ता है। और बयान देने के पहले ही मार डालता है।

एसपी को शंकर की बातो में डीएम दिखा , तुम्हारा इस लाश और यहाँ बैठी महिला से क्या सम्बन्ध है....... जो रेशम की एक डोरी का कलाई से होता है। जो दुनिया का सबसे बड़ा रिश्ता बनता है। माना जाता है। और राजाओ का त्यौहार माना जाता है। शंकर ने बिना हिचके एसपी से कह डाला जिस एसपी से किसी की बोलने की हिम्मत पुलिस वाले कर्मचारियों नही होती थी । सत्य में आच नही होता है ललकार होता है/ हिम्मत होता है बहादुरी होती है।प्रपंच नही होता है।

गिरफ्तारी हुयी दहेज़ के लिये मारा गया था। झूठे प्यार का इल्जाम लगाया गया था। किसी को बख्शा नही गया था। और ......आज रक्षाबंधन के दिन सुधा न केवल शंकर शंकर को राखी बाँध रही थी।एसपी को भी ... मैं कुछ नही लुंगी, पांच सौ के नोटों को वापस करती हुयी सुधा ने कहा मुझे चाहिए ..... एसपी ने कहा बोलो क्या चाहिये... सारी नदियो को साफ कराया जाय जब कूड़ा करकट नही रहेगा तो शव भी नही मिलेगे। आकस्मिक चेकिंग घाटो पर करायी जाय और हम तथा शंकर इसमें सहयोग करेगे, 24 घण्टे में दो घंटे हर नागरिक को इन कार्यो में देना चाहिये यही धर्म है/कर्म है/ परोपकार है/ सभी धर्मो का सार है। अंतिम परिणाम है रेशम की एक डोरी दो अजनबी को अपना बना लिया// एसपी रो रहे थे शंकर अपनी आखो को रुमाल से ढके थे। सुधा पैर छु रही थी लेकिन खूबसूरत आखो से कुछ छलक रहा था। रक्षाबंधन की दार्शनिकता और श्रेष्टता तीनो समझ में आ चुकी थी।


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